आलोचना >> सूर्यबाला का सृजन संसार सूर्यबाला का सृजन संसारदामोदर खडसे
|
0 |
लेखन कला की असीमित क्षमता और जीवन की सात्विकता का जब संतुलित समीकरण बनता है, तब रचना अपनी सार्थकता की चरम पर होती है, यह संतुलन यह सार्थकता यदि सहज; सरल, स्वाभाविक और समन्वित रूप में कहीं देखनी हो तो सूर्यबाला के लेखन और उनके व्यक्त्वि को देखना होगा। ऐसा अद्भुत समन्वय बहुत बिरला होता है, जहाँ लेखन और व्यक्त्वि में इतनी पारदर्शिता हो कि दोनों एक दूसरे में घुल-मिल जाए। जैसा लिखें वैसा जिएं। उपलब्धियों के शिखर पर भी सादगी का दामन न छूटे…निरंतरता कभी न टूटे।
सूर्यबाला की कहानियाँ – उपन्यास इस बात के गवाह हैं कि अपरोक्ष रूप से विसंगतियाँ का सकरात्मक-भाव पिरोते हुए बेहतर जीवन के लिए उद्युक्त करते हैं। जरूरत होने पर सूर्यबाला के व्यंग्य समाज की विसंगतियों का आपरेशन करने में संकोच नहीं करते। सूर्यबाला ने कथा और व्यंग्य का अद्भुत संतुलन अपने लेखन में साधा है।
सूर्यबाला के पात्र-घर परिवार समाज से उभरते हैं। स्थितियों के हाथों छले गए, व्यवस्था में पिसे हुए, फिर भी आस्था और आशा का दामन न छोड़ने वाले पात्र सूर्यबाला की कलम से निकलकर स्वतंत्र होते हैं। लेखिका, पात्रों के विकास-क्रम, उनके बयान, उनके जीवन में कभी दखल देती नज़र नहीं आतीं। पात्र अपना जीवन स्वयं गढ़ते हैं और अपनी बात अपनी भाषा में करते हैं।
सूर्यबाला के उपन्यासों, कथा-संग्रहों पर ढेरों लिखा जा चुका है। इस संग्रह में भी उपन्यासों और कहानियों पर कई लेखकों एवं समीक्षकों द्वारा सूर्यबाला की कथा यात्रा की सटीक पड़ताल करने की कोशिश की गई है।
– डॉ. दामोदर खड़से
(संपादक)
|